आदिवासी और लोक जीवन में जीवन की कठिन कर्ममूलक गतिविधि और सौंदर्य बोध परस्पर इतने घुले मिले हैं कि कई बार जीवन की गतिविधि और कला के बीच की पृथकता की रेखाएं लुप्त सी होने लगती हैं। आदिवासी समाज में कठोर वन्य जीवन और ग्रामीण अंचलों की संस्कृति, श्रम पर आधारित है। इसमें कर्म की प्रधानता है जो जीवन की धुरी भी है, जिसे कर्म कहा जाता है। जीवन में कर्म से जुड़ी महत्ता की अभिव्यक्ति और कृतज्ञता के रूप में कर्म वृक्ष की पूजा से संबंधित कर्मा उत्सव लगभग छत्तीसगढ़ के पूरे पूर्वी अंचल में आदिवासी समाजों में प्रचलित है। करमा के विविध रूपों के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के ग्रामीण समाज में अनुष्ठान उत्सव आदि में किए जाने वाले अवसरों में रास करमा एक लोकप्रिय नृत्य है। रास करमा मुख्यतः कंवर जनजाति के पुरुषों द्वारा किया जाता है। इस नृत्य में मृदंग की थाप पर बड़े-बड़े पीतल के बने मंजीरे जिन्हें रास कहा जाता है उन्हें बजाकर नर्तक द्वारा कर्णप्रिय संगीत के स्वर रचे जाते हैं जो दर्शकों और श्रोताओं को आनंदित करते हैं।