माओ पाटा
मुरिया जनजाति में अनेक प्रदर्शनकारी कलाएं प्रचलित हैं जो अत्यंत मनोरम तथा लयात्मकता से परिपूर्ण हैं। मुरिया बस्तर अंचल के नारायणपुर और साथ ही कोंडागांव के कुछ हिस्सों में निवास करने वाली एक प्रमुख जनजाति है। माओपाटा मुरिया जनजाति का एक ऐसा ही नृत्य है जिसमें नाटक के भी लगभग सभी तत्व विद्यमान हैं।
माओपाटा का आयोजन घोटुल के प्रांगण में किया जाता है जिसमे युवक और युवतियां सम्मिलित होते हैं। नर्तक विशाल आकार के ढोल बजाते हुए करते हुए घोटुल में प्रवेश करते हैं। इस नृत्य में गौर पशु है तथा पाटा का अभिप्राय कहानी है जिसमे गौर के पारंपरिक शिकार को प्रदर्शित किया जाता है। पोत से बनी सुंदर माला,कौरी और भृंगराज पक्षी के पंख की कलगी जिसे जेलिंग कहा जाता है, युवक अपनी सिर पर सजाए रहते हैं और युवतियां पोत और धातुई आभूषण, कंघियाँ और कौड़ी से श्रृंगार किये हुए रहती हैं। एक व्यक्ति गौर पशु का स्वांग लिए रहता है जिसका नृत्य के दौरान शिकार किया जाता है।\